भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ख़ुशियाँ मनाने से / संजय चतुर्वेदी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:25, 10 दिसम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संजय चतुर्वेदी |संग्रह=प्रकाशवर्ष / संजय चतुर्...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भूख थोड़ा कम लगती है
नग्नता धरोहर बन जाती है संस्कृति की
ख़ूब बिकती है भीतर की लाचारी
बाहर की दुकान पर
नाचने से शरीर की हड्डियाँ नहीं दिखाई पड़तीं
नाच हर आदमी को अच्छा लगता है

बात थोड़ा कम कहने में ही
कविता रहती है
इस तरह का ऎलान है शायद।