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फ़स्ल सारी आप बेशक अपने घर ढुलवाइए / द्विजेन्द्र 'द्विज'

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फ़स्ल सारी आप बेशक अपने घर ढुलवाइए

चंद दाने मेरे हिस्से के मुझे दे जाइए


तैर कर ख़ुद पार कर लेंगे यहाँ हम हर नदी

आप अपनी कश्तियों को दूर ही ले जाइए


रतजगे मुश्किल हुए हैं अब इन आँखों के लिए

ख़त्म कब होगी कहानी ये हमें बतलाइए


कब तलक चल पाएगी ये आपकी जादूगरी

पट्टियाँ आँखों पे जो हैं अब उन्हें खुलवाइए


ये अँधेरा बंद कमरा, आप ही की देन है

आप इसमें क़ैद हो कर चीखिए चिल्लाइए


सच बयाँ करने की हिम्मत है अगर बाक़ी बची

आँख से देखा वहाँ जो सब यहाँ लिखवाइए


फिर न जाने बादशाहत का बने क्या आपकी

नफ़रतों को दूर ले जाकर अगर दफ़नाइए