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जतन / पीयूष दईया

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आते हैं जब वे
तो लगता है तुम मेरे पास हो
मुझ में से होकर
निकलते हुए भी बाहर

-पोंछता नहीं आँसुओं को
सूखने से उन्हें बचाने का जतन करता हूँ
सो बहते रहो
कि बचा सकूँ।