भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ख़ुद्दार और सनकी / पीयूष दईया
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:06, 13 दिसम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पीयूष दईया |संग्रह= }} <Poem> चाणक्य मित्र की सिखावन ...)
चाणक्य मित्र की सिखावन रहती
गेंद अपने पाले में रखनी चाहिए
हमेशा
सुनता वह कवि गर्वीला
ख़ुद्दार मूर्ख का सनकी चेला
उछल-उछल
टप्पे-टप्पे होती गेंद को
लोक लेता हर बार
डाल आता फिर
अन्यों के पाले में
रहता
यूँ ख़ुश-ख़ुश सनकी चेला
और हँसता वह
ख़ुद्दार मूर्ख
नेपथ्य से