कविता-कथ्य(अनु०-प्रमोद कौंसवाल) / जॉर्ज डे लिमा
वनों में पेड़-पौधे थे जिनमें बने
छत्तों से मैंने मधु लिया
पानी से लिया खारा
आकाश की छत से उजाला
आपको बताऊं भाई लोगों
इन सबसे ही मैंने कविता का तत्व लिए
ईश्वर को भेंट करने के लिए
ज़मीन नहीं खोदी मैंने सोने के लिए
अपने भाइयों का ख़ून नही पिया
जैसे जोंक पीते हैं
ताल किनारे वालों से निवेदन
मुझे छो़ड़ दो मेरे हाल पर
रेड़ी-फेहड़ी और नव धनाढ्यों
आती है मुझे दूरी बनानी कि कैसे तुम
मेरे पास न फटक सको
ये जीवन कोई हरी घास का मैदान नहीं
मेरा यकीन है ईश्वर की चकरघिन्नी में
कर्कश मुर्गें क्यों नहीं बांग दे रहे
जबकि दिन गिरने को है
आते और जाते देखे मैंने जहाज़
जैसे फ़ज़ीहत
किसी मोटे को आग में जैसे
अंधकार में सांप जैसी आकृति
कांगो कैप्टन किधर हैं
और वो टापू संत ब्रेंडोन का
कैप्टन बेहद काली है रात
उम्दा नस्लवाले कुत्तों की चिल्लपों
होती है अंधकार में
अरे वो अछूतों बताओ उस मुल्क़ का नाम
जिसकी तुम तमन्ना रखते हो
वनों के पेड़ पौधों से मैंने मधु लिया
जल से नमक
आसमान से रोशनाई
महज़ कविता पंक्तियां मेरे पास
तुमको समर्पित करने के लिए
अबे वो भाई जान लोगों
आओ बैठो मेरे पास
अंग्रेज़ी से अनुवाद : प्रमोद कौंसवाल