Last modified on 14 दिसम्बर 2008, at 10:05

एक भरी हुई नाव / विश्वनाथप्रसाद तिवारी

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:05, 14 दिसम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विश्वनाथप्रसाद तिवारी |संग्रह= }} <Poem> ऊँची घासदा...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

ऊँची घासदार ढलानों से
देखता हूँ नीचे

दूर-दूर जंगल
और सोई हुई घाटी

जैसे एक भरी हुई नाव
धीरे-धीरे डूब रही हो।