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इमारतें / तुलसी रमण

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माना ऊँची
बहुत ऊँची
बन रही हैं इमारतें
आसमान को छूती हुई
लेकिन हरेक की
नींव रखने के साथ ही
मिट्टी में धँसी हुई
आस-पास उगी है
अनेक झुग्गियाँ
जिनके बिना
कुछ भी नहीं
ये इमारतें।