भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इमारतें / तुलसी रमण
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:54, 23 दिसम्बर 2008 का अवतरण
माना ऊँची
बहुत ऊँची
बन रही हैं इमारतें
आसमान को छूती हुई
लेकिन हरेक की
नींव रखने के साथ ही
मिट्टी में धँसी हुईं
आस-पास उगी हैं
अनेक झुग्गियाँ
जिनके बिना
कुछ भी नहीं
ये इमारतें।