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बुलबुला / संजय चतुर्वेदी
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बुलबुले में रहने के लिए
कुछ किराया नहीं लगता
आदमी ख़ुद अपने बुलबुले का मालिक होता है
शुरू में होता है छुई-मुई
बाद में फोड़े नहीं फूटता
बेलबुले से आते हैं संदेश
बच्चों के लिए
लोगों के लिए
ब्रह्माण्ड के लिए
बुलबुले के अन्दर दुनिया का शोर नहीं पहुँचता
बुलबुले के अन्दर होता है मोक्ष
एक दिन उठ जाता है बुलबुला
सूखी रह जाती है धरती
जिस पर टिका था बुलबुला।