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मेरी तरह एक तारा / सविता सिंह

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मैंने अलग कर लिया था खुद को
तभी जब समझ गई थी
करने पड़ेंगे कई पाप
पुण्य की तरह ही उसे पाने के लिए
जो मेरा इंतज़ार करता है
मेरे ही भीतर बैठ कर

चली गई थी उन विधवाओं के पास
जिन्हें सम्भोग वर्जित है
जिनके रेशमी स्तनों पर
नहीं पड़ता बाहर का कोई प्रकाश

मैं लौट सकने की हालत में नहीं थी वर्षों
मैंने काट लिए थे अपने हाथ
जिनसे स्पर्श कर सकती उस हृदय को
जिसमें मेरे लिए उद्दाम वासना थी

मेरी आँखों पर पड़े रहे
जाने कब तक
वे अजीब फूल
जो आँखों की ही तरह थे
उनसे रक्त टपकता था प्रेम का
जो फूल की तरह ही था

मैं अब भी चाहती हूँ उस तारे को
जो मेरी तरह है