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जब भी तेरा नाम याद आयेगा/ विनय प्रजापति 'नज़र'

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लेखन वर्ष: २००२

जब भी तेरा नाम याद आयेगा
मेरी किताबों में पाया जायेगा

रातें गुज़रे अगस्त की रातें
वो चाँद कब लौट के आयेगा

वो फ़रवरी की धूप देखी नहीं
बसंत शाखों पे कैसे आयेगा

ख़ुशज़बाँ बिना ख़ुशी परायी है
ग़मज़दा हो के जिया जायेगा

तारीखों की तारीक़ में चाँद गुम
रोशनी कौन कैसे उगायेगा

जब भी पढ़ा ग़ज़ल को आँखों ने
चेहरा तेरा झिलमिलायेगा

ख़ुशबू तेरी इक-इक हर्फ़ में
हर अस्लूब निभाया जायेगा

क़यामत की रात जब आयेगी
ज़ुबाँ पर तेरा नाम आयेगा

‘नज़र’ की ख़ाहिश तुम शीना
तुम्हें न पाया तो क्या पायेगा

अस्लूब: नियम या शैली