भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अकेला पानी / ध्रुव शुक्ल
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:49, 29 दिसम्बर 2008 का अवतरण
अपने ही अथाह में
खोजता है अकेला पानी
छिपने की जगह रेत में
रेत नहीं छिपाती उसे
ठेलती रहती है गहराई की ओर
रेत से पानी
पानी से रेत
मिल रहे हैं ऐसे ही
न जाने कब से इसी तरह
बचाए हुए अपना प्रेम