भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बात / प्रयाग शुक्ल
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:30, 1 जनवरी 2009 का अवतरण
उस बात के सिरे के लिए कोई
शब्द नहीं है शुरू में ।
और जितने आते हैं उन्हें हम एक-एक कर
अधूरा मानते हुए छोड़ने लगते हैं ।
हम कई चीज़ों को याद करते हैं
और पाते हैं कि वे उस बात के बीच
की नहीं हैं । यह एक लंबा सिलसिला है ।
अंत में हम उठ पड़ते हैं,
कापी कलम और सिगरेट का पैकेट
संभालते ।