भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पिंजड़ा / प्रयाग शुक्ल

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:44, 1 जनवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रयाग शुक्ल |संग्रह=यह एक दिन है / प्रयाग शुक्ल }...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इस पिंजड़े को देख कर
याद आता है एक पिंजड़ा!
अब कितन भी यद करूँ
नाम याद नहीं आएंगे,
बचपन में पाली हुई
चिड़ियों के।
चमकते पत्तों पर कुछ
लिखा नहीं है। अब।
अंगुली रख कर बता नहीं सकूंगा।
मैं कुछ कहना चाहता हूँ
बहुत दिनों से।
किस तरह भूली हुई थी
कहने की इच्छा !