भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
करो भोर का अभिनन्दन / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:04, 6 जनवरी 2009 का अवतरण
मत उदास हो मेरे मन
करो भोर का अभिनन्दन !
काँटों का वन पार किया
बस आगे है चन्दन-वन ।
बीती रात ,अँधेरा बीता
करते हैं उजियारे वन्दन ।
सुखमय हो सबका जीवन !
आँसू पोंछो, हँस देना
धूल झाड़कर चल देना ।
उठते –गिरते हर पथिक को
कदम-कदम पर बल देना ।
मुस्काएगा यह जीवन ।
कलरव गूँजा तरुओं पर
नभ से उतरी भोर-किरन ।
जल में ,थल में, रंग भरे
सिन्दूरी हो गया गगन ।
दमक उठा हर घर-आँगन ।