भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पेंटिंग-2 / गुलज़ार

Kavita Kosh से
विनय प्रजापति (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:42, 7 जनवरी 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

’जोरहट’ में एक दफ़ा
दूर उफ़क के हलके-हलके कुहरे में
’हमीन बरुआ’ के चाय बाग़ान के पीछे
चांद कुछ ऎसे दिखा था
जैसे चीनी की चमकीली कैटल रखी हो!