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आख़िरकार / विजयदेव नारायण साही

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आख़िरकार कायरता ही
बची रहती है
चुप रहो
अपनी प्रार्थनाओं को लेकर चुप रहो

मैं इतना ही तय करता हूँ
कि आज सड़क पर एक क़दम
चलूँगा
पैर उठाते ही
कोई पीछे से कालर पकड़ कर खींचता है
किस से पूछ कर पैर उठाया।

आख़िरकार...