भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बम / हैरॉल्ड पिंटर

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:14, 8 जनवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हैरॉल्ड पिंटर |संग्रह= }} <Poem> और कहने के लिए शब्द ब...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

और कहने के लिए शब्द बाक़ी नहीं है
हमने जो कुछ छोड़ा है सब बम हैं
जो हमारे सरो पर फट जाते हैं
हमने जो कुछ छोड़ा है सब बम हैं
जो हमारे ख़ून की आखिरी बूँद तक सोख लेते हैं
जो कुछ छोड़ा है सब बम हैं
जो मृतको की खोपड़ियाँ चमकाया करते हैं

मूल अंग्रेज़ी से अनुवाद : व्योमेश शुक्ल