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व्यग्रता / प्रेमरंजन अनिमेष

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सूर्य से पहले उठूँगा मैं
मेरी आँखों के डोरे होंगे पहली किरणों-से लाल

केशोंसे चूता पानी
और गीली पीठ

अफ़रा-तफ़री में डालूँगा कुछ मुँह में
होठों पर लगी रहेगी जूठन
जैसे कीच पपनियों में

बटन कमीज़ के डेढ़वार
पावों में चप्पलें दोरंग
राह पर गिरती ही होगी कभी ओस

आज कहीं पर रखने बात
आज किसी का देने साथ
समय से पहले जाना है