भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सहेली / एम० आर० रेणुकुमार

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:24, 8 जनवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=एम० आर० रेणुकुमार }} <Poem> देखा उसे एक बार चिलचिलात...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

देखा उसे एक बार
चिलचिलाती धूप में
सड़क के किनारे
पत्तों से बुनी छतरी के नीचे बैठी
वह तोड़ रही थी पत्थर
लोच नहीं था वही पुराना

वह तो
उछाल कर लोकती पत्थर
अपनी कमा उँगलियों में
कमाती मुझ से ज़्यादा नम्बर
मेरे नम्बर घटते जाते
उस पुराने खेल की धुन में
(कूट्टूकारी)

अनुवाद : राजेन्द्र शर्मा