अब धरती के गान लिखो / महावीर शर्मा
अब धरती के गान लिखो
लिख चुके प्यार के गीत बहुत कवि अब धरती के गान लिखो।
लिख चुके मनुज की हार बहुत अब तुम उस का अभियान लिखो ।।
तू तो सृष्टा है रे पगले कीचड़ में कमल उगाता है,
भूखी नंगी भावना मनुज की भाषा में भर जाता है ।
तेरी हुंकारों से टूटे शत् शत् गगनांचल के तारे,
छिः तुम्हें दासता भाई है चांदी के जूते से हारे।
छोड़ो रम्भा का नृत्य सखे, अब शंकर का विषपान लिखो।।
उभरे वक्षस्थल मदिर नयन, लिख चुके पगों की मधुर चाल,
कदली जांघें चुभते कटाक्ष, अधरों की आभा लाल लाल।
अब धंसी आँख उभरी हड्डी, गा दो शिशु की भूखी वाणी ,
माता के सूखे वक्ष, नग्न भगिनी की काया कल्याणी ।
बस बहुत पायलें झनक चुकीं, साथी भैरव आह्वान लिखो।।
मत भूल तेरी इस वाणी में, भावी की घिरती आशा है,
जलधर, झर झर बरसा अमृत युग युग से मानव प्यासा है।
कर दे इंगित भर दे साहस, हिल उठे रुद्र का सिहांसन ,
भेद-भाव हो नष्ट-भ्रष्ट, हो सम्यक् समता का शासन।
लिख चुके जाति-हित व्यक्ति-स्वार्थ , कवि आज निधन का मान लिखो।।
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