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प्रिया-1 / ध्रुव शुक्ल
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शब्द सुन्दर होते हैं
उन पर कोई भी रीझ सकता है
कभी-कभी जीवन में
धोखे की भोर होती है
हम चल देते हैं
नदी किनारे
आधी रात
सेज पर छोड़कर
अपनी प्रिया को
उसे अकेला पाकर
देवता कलंकित करते हैं
अपना काला मुँह करके दमकते हैं
शब्द ऎसे भी हमसे बिछुड़ जाते हैं
हमारे शाप से शिला बन जाते हैं
फिर युगों तक हमारी प्रतीक्षा करते हैं...