भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सिंहस्थ हवा / श्रीनिवास श्रीकांत
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:10, 12 जनवरी 2009 का अवतरण ("सिंहस्थ हवा / श्रीनिवास श्रीकांत" सुरक्षित कर दिया [edit=sysop:move=sysop])
बलिष्ठ सिंहनी हवा
दौडऩे लगी
एकाकी शाद्वल में
मध्य पथ में डोलने लगी
सुन्दर पीली-पीली घास
पियानो रीड-सी नरकट
फुर्तीली वह भाग रही थी
अपने आसपास से बेबाक
भाग रहे थे
उसके साथ साथ
उसके किशोर
मारुत-शावक् भी
पठार में झकझोर दिये थे
उसने सभी
तीरन्दाज़ दरख़्त
कुलाँचों से डोल रहे थे
बाँसों के आतंकित झुरमुट
बजने लगी थीं
मौसम की
मेहराबदार खिड़कियाँ भी
एक बड़ा वन्य उद्यान था वह
सिंहनी का नन्दन-कानन
पठार में खुल रहा था
कुदरत का वह सुन्दर कालीन
ऐसी ख़ूबसूरत जाँबाज शेरनी
बीहड़ में
मैंने पहली बार देखी
घण्टों दौड़ती रही थी
चौगान में सरपट
वनबिलाव की वह
चतुर मौसी।