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प्रेम / रेखा चमोली

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प्रेम में
चट्टानों पर उग आती है घास

किसी टहनी का
पेड़ से कटकर
दूर मिट्टी में फिर से
फलना-फूलना
प्रेम ही तो है
प्रेम में पलटती हैं ऋतुएँ

प्रेम में उत्पन्न संतान को
अपनाने से
करता है इन्कार
कायर पिता
बेबस माँ फेंक देती है
नदी किनारे
जहाँ नोच खाते हैं उसे
आवारा कुत्ते।