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सामने / ध्रुव शुक्ल

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चूहा बिल से निकलकर ठिठक
जाता है बिल्ली को देखकर सामने
कुत्ते को देखकर बिल्ली छप्पर पर
चढ़ जाती है द्वार से निकलकर एक
हाथ रोक लेता है दस्तक देने वाले
हाथ को आवाज़ एक मुख से खुलकर
ताले-सी लग जाती है दूसरे मुख पर
दॄष्टि कहीं नहीं जाती टकराती है
बीच अधर में प्रकाश ठिठका हुआ
चेहरों के सामने हवा ठिठकी हुई
स्तब्ध टहनी के सामने टहनी ठिठकी
हुई पक्षी घोंसलों के सामने खोखल
से झाँकता फन ठिठका हुआ मन
जल की गहराई में मछली मछुआरे
ठिठके हुए वंशी डाले पछाड़ खाई
लहरें किनारों पर ठिठकी खड़ी
नौकाएँ पीछे धकेलीं