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पिता जी ( शब्दांजलि-५) / नवनीत शर्मा
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पिता
उसकी जेब में पड़ी कलम
के कारण विनम्र हो गए हैं उसके शब्द
ख़त्म होने को डराते
चावल के पेड़ू ने कर दिया है उसे
सावधान
उदासियों में
बदहवासियों में वह सीख गया है बनना
अपना बाप
अपने आप.