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दिन / ओमप्रकाश सारस्वत
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दिन 
लिख रहे हैं धुंध 
कुंद हो रहा उजास 
आस क्या करे? 
पहाड़ 
पढ़ रहे हैं बर्फ 
सर्द पड़ी रही उमंग 
रंग क्या करे? 
सूर्य 
दे रहा दग़ा
जगा न भोर का हुलास 
हास क्या करे? 
रक्त
रेत पर लुटा 
उगा न गंध न पराग 
राग क्या करे? 
धूप 
बादलों में रोए 
ढोए मिन्नतें हज़ार 
प्यार क्या करे?
	
	