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डर / प्रेम साहिल
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डर के मारे
मैंने जिस क हाथ थामा
वह डर ही था
डर के मारे
मैंने जिस की पूजा की
वह भी डर ही था
डर के मारे
मैं जिस घर में घुसा था
वह डर का था
डर के मारे
ये भी न जान सका
कि डर तो
डर का नाटक करता था
मुझे डराता था, ख़ुद डरता था।