भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जिसे कल तक / लीलाधर मंडलोई

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:26, 16 जनवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लीलाधर मंडलोई |संग्रह=क्षमायाचना / लीलाधर मंडल...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उसे रोज़ जाते
देखते थे सब

एकदम चुप
रास्ते के अलावा
देखती न थी कुछ और

लौटी जब आज
हाथ में एक डिग्री

आज वह नहीं थी वही
जिसे कल तक सबने
जाते देखा था