भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मेरा एक सपना यह भी / चन्द्रकान्त देवताले
Kavita Kosh से
74.65.132.249 (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 01:04, 18 जनवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चन्द्रकान्त देवताले }} <poem> सुख से पुलाकने से नही...)
सुख से पुलाकने से नहीं
रबने-खटने के थकने से
सोई हुई है स्त्री,