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सुनहरी लड़की का कसीदा / फ़ेदेरिको गार्सिया लोर्का
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तालाब में नहा रही थी
सुनहरी लड़की
और तालान सोना हो गया
कँपकँपी भर गए उसमें छायादार शाख और शैवाल
और गाती थी कोयल
सफ़ेद पड़ गई लड़की के वास्ते
आई उजली रात
बदलियाँ चांदी के गोटों वाली
खल्वाट पहाड़ियों और बदरंग हवा के बीच
लड़की थी भीगी हुई
जल में सफ़ेद
और पानी था दहकता हुआ बेपनाह
फिर आई ऊषा
हज़ारों चेहरों में
सख़्त और लुके-छिपे
मुंजमिद गजरों के साथ
लड़की आँसू ही आँसू शोलों में नहाई
जबकि स्याह पंखों में
रोती थी कोयल
सुनहरी लड़की थी
सफ़ेद बगुली
और तालाब हो गया था सोना !