भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बच्चे की हथेली पर / मोहन साहिल
Kavita Kosh से
प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:07, 20 जनवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मोहन साहिल |संग्रह=एक दिन टूट जाएगा पहाड़ / मोहन ...)
अपनी आत्मा को बच्चे की हथेली पर रखकर
वह रोज़ निकलता है
एक चिरपरिचित द्वार से
सिर पर उठाए
इच्छाओं और जरूरतों का गट्ठर
और चल पड़ता है जाने पहचाने रास्तों पर
जिस पर उग आता है हर रोज़् एक कँटीला झाड़
गुज़रते लोग सदा की तरह तय करते हैं रास्ता
लौट आते हैं घर हँसते मुस्कुराते
उन्हें कहीं नहीं दीखता कँटीला झाड़
वे कभी नहीं देते बच्चे के हाथ में आत्मा
उसे रखते हैं अलमारी में गहनों के बीच
जिनके सिरों पर नहीं होता गट्ठर
वे कूदते-फाँदते करते हैं रास्ता पार
जिसकी आत्मा रहती है बच्चे की हथेली पर
वह रोज रास्ते में गट्ठर उतार
करता है रास्ता साफ
वह चिंतित है रास्ते के लिए
साफ रखना चाहता है
उसे राह चलते बच्चों के लिए।