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वह अपने हाथों से / उदयन वाजपेयी

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वह अपने हाथों से
अँधेरे में खोई अपनी देह को
खोजती-खोजती सो जाती है थककर

अपने आलोक के झीने जाल में
धीरे-धीरे झूलता है ताम्बई चन्द्रमा

वह आईने के सामने खड़ी
सोचती है : आईना एक दीवार है
जहाँ से टकराकर हर बार गेंद की तरह
लौट आता है
मेरा ही चेहरा !