भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वह अपने हाथों से / उदयन वाजपेयी
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:09, 20 जनवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उदयन वाजपेयी |संग्रह=कुछ वाक्य / उदयन वाजपेयी }} ...)
वह अपने हाथों से
अँधेरे में खोई अपनी देह को
खोजती-खोजती सो जाती है थककर
अपने आलोक के झीने जाल में
धीरे-धीरे झूलता है ताम्बई चन्द्रमा
वह आईने के सामने खड़ी
सोचती है : आईना एक दीवार है
जहाँ से टकराकर हर बार गेंद की तरह
लौट आता है
मेरा ही चेहरा !