भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लोग ऊँची ऊड़ान रखते हैं / ज्ञान प्रकाश विवेक

Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:08, 20 जनवरी 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज



लोग उँची उड़ान रखते हैं
हाथ पर आसमान रखते हैं

शहर वालों की सादगी देखो
अपने दिल में मचान रखते हैं

ऐसे जासूस हो गये मौसम
सबकी बातों पे कान रखते हैं

मेरे इस अहद में ठहाके भी
आँसुओं की दुकान रखते हैं

हम सफ़ीने हैं मोम के लेकिन
आग के बादबान रखते हैं