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पीपल न सही / ओमप्रकाश सारस्वत
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पीपल न सही
तुम इस धरती पर
नीम ही रोपो
यह उन बबूल के पेड़ों से तो
अच्छा ही है
कुछ तीखा होगा
धीरे-धीरे रुच जाएगा
कुछ रूखा होगा
धीरे-धीरे रस लाएगा
पर जीवन-भर पाखण्डी-पादप को भजने में
कुछ कड़वापन हितकर सह लेना
अच्छा ही है
वे पीढ़ी-दर-पीढ़ी
फसलों के सपने पाले
जन्मे, फिर बढ़े, जवान हुए
मिट्टी-सम हो गए
पर बंधु ! आने वाली नस्लों के हित अब तो
कुछ टुकड़ा उपजाऊ कर जाना अच्छा ही है
यूँ तो धरती
झंखाड़ों से भी पुत्रवती है
औ पाले हैं कई विषधर
काक, सियार इसी ने
पर इस मानव-विद्वेषी सँस्कृति के आँगन में
कोई बिरवा विषहर तज जाना
अच्छा ही है