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लकडहारे ओ / ओमप्रकाश सारस्वत
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लकड़हारे ओ !
चीड़वन
मत काटो
हो सके तो
इसकी हवा
क्षयरोगी शहर की
बस्तियों में बांटों
शहर के नथुनों में
धूल, धुआं हैं
एक भी नहर नहीं
प्यासों के गाँव में
मेघ ओ !
हो सके तो
अपनी पनिहारिनों को
नदियों के मूल तक हाँको
तुम भी खूब हो
पत्रा-देख बरसते हो
फिर खूब कर जाते हो
धरती के होंठ तर
धरती ओ !
हो सके तो मेघ से
पक्का अनुबंध गांठो