जाने क्यों आंखों में रह-रह,
घिर आता संसार किसी का
पलकों में चपला सी बातें,
अलकों में अलसाई रातें
मंद हास्य की मधु मदिरा ले
सौरभ के मिस चलती साँसें
सुधि-भीने सपनों की आभा
में चल आता प्यार किसी का
मूक क्षणों में मन का मिलना
नयनों में आशा का खिलना
अति सुकुमार लता-सा जैसे
सुख-संभार-नता-सा मिलना
मधु यादों में तिर-तिर आता
मधु-गंधी श्रृंगार किसी का
फूलों का निष्ठुर परिवर्त्तन
वासन्ती में पतझड़ नर्त्तन
जीवन की सूनी-सी घाटी
में लहरों का प्रत्यावर्त्तन
उजड़े कूल-किनारों पर फिर
क्यों दीखे अभिसार किसी का?