भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ख़्वाबों के लिए हैं न किताबों के लिए हैं / नवनीत शर्मा
Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:41, 24 जनवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= नवनीत शर्मा |संग्रह= }} Category:ग़ज़ल <poem> ख़्वाबों ...)
ख़्वाबों के लिए हैं न किताबों के लिए हैं
हम रोज़-ए-अज़ल से ही अज़ाबों के लिए हैं
चलते भी रहें और न मंज़िल नज़र आए
हम अपने ही अंदर के सराबों के लिए हैं
खेतों में जुटे लोग सवालों की तरह हैं
संसद में जुटे लोग जवाबों के लिए हैं
क्या जाने कहां कौन सी सूरत नज़र आए
इस दिल के कई चेहरे नकाबों के लिए हैं
ख़ुश्बू ही कहाँ, ज़िक्र भी गुम हो गया तेरा
सब याद के पिंजर तो उक़ाबों के लिए हैं
रास आ गया अब हमको भी सन्नाटे में जीना
हम याद के वीरान ख़राबों के लिए हैं