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सुधि करो प्राण पूछा तुमने " वह पीर प्रिये क्या होती है / प्रेम नारायण 'पंकिल'

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सुधि करो प्राण पूछा तुमने " वह पीर प्रिये क्या होती है ।
जिसकी असीम वेदना विकल हो निशा निरंतर रोती है।
आया न अभी ऋतुराज तभीं होती उजाड़ क्यों वनस्थली।
क्यों नंदनवन का प्रिय-परिमल बांटता प्रभंजन गली-गली ?
स्वप्निल निशि में क्यों चीख-चीख उठती न कोकिला सोती है?
निष्कंप दीप लौ पर पतंग बालिका कलेवर धोती है।"
बस टुकटुक मुख देखती रही बावरिया बरसाने वाली
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवनवन के वनमाली॥ १५॥