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कैसे कहकर थे फूट पड़े छोडो न अकेला मुझे प्रिये / प्रेम नारायण 'पंकिल'

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कैसे कहकर थे फूट पड़े छोडो न अकेला मुझे प्रिये ।
इस प्रेम भिक्षु को ठुकरा कर मत दूर करो प्रस्थान प्रिये ।
नव-नव भंगिनी प्रणय-मुद्राओं से न करो सूनी रजनी ।
थिरकते गीत की विविध राग-रागिनी रचोगी कब सजनी।
दर्पण में बिंबित विविध रमन-मुद्राएँ घटित करो रानी ।
पद-पूर्ति समस्यायें बूझेगा कौन पहेली की वाणी?
आ जा लीला-सर्जक ! विकला बावरिया बरसाने वाली -
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन वन के वनमाली॥ ३०॥