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सुधि करो प्राण! कहते गदगद "प्राणेश्वरि, तुम जीवनधन हो / प्रेम नारायण 'पंकिल'

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सुधि करो प्राण! कहते गदगद "प्राणेश्वरि, तुम जीवनधन हो।
मुझ पंथ भ्रमित प्रणयी पंथी हित तुम चपला-भूषित घन हो।
तव अंचल की छाया में ही मेरी अभिलाषा सोती है ।
तव प्रणय-पयोधि-लहरियां ही मेरा मानस तट धोती हैं ।
तव मृदुल वक्ष पर ही मेरे लोचन का ढलता मोती है ।
तव कलित-कांति-कानन में ही मेरी चेतनता खोती है ।
अब सहा नहीं जाता विकला बावरिया बरसाने वाली -
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवनवन के वनमाली ॥43॥