भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

विडम्बना (कविता लिखने की कोशिश में) / शशि सहगल

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:11, 25 जनवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शशि सहगल |संग्रह= }} <Poem> भरोसे की आँच में झूठ सोना ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भरोसे की आँच में
झूठ
सोना बन चमकने लगा
और सच
एक कोने में
मायूस खड़ा
जोहता रहा बाट
खरा साबित होने की