भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पौढ़िये लालन, पालने हौं झुलावौं / तुलसीदास

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

राग केदारा

पौढ़िये लालन, पालने हौं झुलावौं |
कर पद मुख चखकमल लसत लखि लोचन-भँवर भुलावौं ||
बाल-बिनोद-मोद-मञ्जुलमनि किलकनि-खानि खुलावौं |
तेइ अनुराग ताग गुहिबे कहँ मति मृगनयनि बुलावौं ||
तुलसी भनित भली भामिनि उर सो पहिराइ फुलावौं |
चारु चरित रघुबर तेरे तेहि मिलि गाइ चरन चितु लावौं ||

सोइये लाल लाडिले रघुराई |
मगन मोद लिये गोद सुमित्रा बार बार बलि जाई ||
हँसे हँसत, अनरसे अनरसत प्रतिबिम्बनि ज्यों झाँई |
तुम सबके जीवनके जीवन, सकल सुमङ्गलदाई ||
मूल मूल सुरबीथि-बेलि, तम-तोम सुदल अधिकाई |
नखत-सुमन, नभ-बिटप बौण्डि मानो छपा छिटकि छबि छाई ||
हौ जँभात, अलसात, तात! तेरी बानि जानि मैं पाई |
गाइ गाइ हलराइ बोलिहौं सुख नीन्दरी सुहाई ||
बछरु, छबीलो छगनमगन मेरे, कहति मल्हाइ मल्हाई |
सानुज हिय हुलसति तुलसीके प्रभुकी ललित लरिकाई ||

        ललन लोने लेरुआ, बलि मैया |
सुख सोइए नीन्द-बेरिया भई, चारु-चरित चार्यो भैया ||
कहति मल्हाइ लाइ उर छिन-छिन, "छगन छबीले छोटे छैया |
मोद-कन्द कुल कुमुद-चन्द्र मेरे रामचन्द्र रघुरैया||
रघुबर बालकेलि सन्तनकी सुभग सुभद सुरगैया |
तुलसी दुहि पीवत सुख जीवत पय सप्रेम घनी घैया ||

सुखनीन्द कहति आलि आइहौं |
राम, लखन, रिपुदवन, भरत सिसु करि सब सुमुख सोआइहौं ||
रोवनि, धोवनि, अनखानि, अनरसनि, डिठि-मुठि निठुर नसाइहौं |
हँसनि, खेलनि, किलकनि, आनन्दनि भूपति-भवन बसाइहौं ||
गोद बिनोद-मोदमय मूरति हरषि हरषि हलराइहौं |
तनु तिल तिल करि, बारि रामपर, लेहौं रोग बलाइहौं ||
रानी-राउ सहित सुत परिजन निरखि नयन-फल पाइहौं |
चारु चरित रघुबंस-तिलकके तहँ तुलसी मिलि गाइहौं ||