भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

टोहाना-1989 / रुस्तम

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:26, 28 जनवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रुस्तम |संग्रह= }} <Poem> नई बिल्डिंगें उठ रही हैं मे...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नई बिल्डिंगें उठ रही हैं
मेरे माँ-बाप का पुराना घर
अब और भी पुराना लगता है
और वे ख़ुद
कुछ और बूढे़ और झुके हुए

समय किसी को नहीं बख़्शता

जिसे विकास कहते हैं
वह हमारी
आत्मा को
रौंदता बढ़ता है।