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मैं-तुम / सरोज परमार

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मैं कहती रही
तुम बहते रहे
कगार ढहते रहे
मैं पीती रही
अंजुरी भर-भर.
तुम कहने लगे
मैं बहने लगी
तुम सरकने लगे
तुम भगने लगे
मैं बिफरती रही
मैं बिखरती रही
सचमुच.