भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

था कहा ”प्रिये! मत ठुकराओ हो प्राय! प्रेरणा-आस तुम्हीं / प्रेम नारायण 'पंकिल'

Kavita Kosh से
218.248.67.35 (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 23:05, 31 जनवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेम नारायण 'पंकिल' |संग्रह= }} Category:कविता <poem> था क...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

था कहा ”प्रिये! मत ठुकराओ हो प्राय! प्रेरणा-आस तुम्हीं ।
कर सकती जिसको अधर-वारूणी तृप्त, प्रणय की प्यास तुम्हीं।
चाहता उल्लसित अम्बर में विस्मृत-सुधि उड़ जाऊँ सजनी।
खग-मुखर स्निग्ध अरूणाभ उषा में तेरा पद गाऊँ सजनी।
दो झुला ग्रीव में निज मृणाल-सी बाहु-वल्लरी तुम अनन्य।
सूक्ष्म को स्थूल का मिले मधुर आभास प्राण हों धन्य-धन्य।“
हो कहाँ प्रीति-वल्लरी! विकल बावरिया बरसाने वाली ।
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन-वन के वनमाली ॥74॥