भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बन्द घड़ी / वेणु गोपाल
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:50, 2 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वेणु गोपाल |संग्रह= }} <poem> कोई भी पूछता है वक़्त तो ...)
कोई भी पूछता है वक़्त
तो मैं बता नहीं पाता
घड़ी बन्द पड़ी है
उसमें अभी भी 1947 ही बजा हुआ है।
पता ही नहीं चल पा रहा है
कि अब क्या बजा होगा?
1978 या जनता सरकार?
किसी भी घड़ी बांधे व्यक्ति से पूछो
वह ऎसा ही कुछ जवाब देता है
ठीक से पता नहीं चल पाता आख़िरकार
तो मैं मज़बूर हो
'भविष्य' बजा लेता हूँ
क्योंकि वही
एक ऎसा समय है जो
हमेशा
बजा रह सकता है।