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यह करूण विनय है प्राणनाथ! उस दिन अवश्य तुम आ जाना / प्रेम नारायण 'पंकिल'

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यह करूण विनय है प्राणनाथ! उस दिन अवश्य तुम आ जाना।
चमकें तारे पर तिमिर-तोम का घटे नहीं ताना-बाना।
जब मधुऋतु की सौरभ बस स्मृति का पश्चाताप बनी हो प्रिय।
साहित्य-कला-संगीत-त्रिवेणी की सूखी अवनि हो प्रिय।
मण्डप पर ही माधवी-लता-दल जब मुरझा जाये नीला।
आँगन का शोकाकुल दूर्वा-दल प्रिय! दुर्दिन में हो पीला।
आना निर्बल के बल! विकला बावरिया बरसाने वाली ।
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन-वन के वनमाली ॥125॥