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आ जा हे प्राणों के राजा! अब याद तुम्हारी गाढ़ हुई / प्रेम नारायण 'पंकिल'
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आ जा हे प्राणों के राजा! अब याद तुम्हारी गाढ़ हुई।
आनन का फागुन हुआ विदा विरही आँखे आषाढ़ हुई।
घिरते नभ में हैं सजल जलद अनजाने आते लोचन भर।
कितनी सुखप्रद थीं वे बाहें रह-रह जाती है आह उभर।
प्रिय! शयन-सदन-शैय्या प्रसून-सी अब बबूल की डाढ़ हुई।
क्या कहूँ नियति की विकट पिशाची-मुँह फैलाये ठाढ़ हुई।
किस अघ का दण्ड दिया, विकला बावरिया बरसाने वाली ।
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन-वन के वनमाली ॥137॥