भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सच ढूंढ्ता रहा शहादत देखिये / प्रकाश बादल
Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:23, 2 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रकाश बादल |संग्रह= }} Category:कविता <poem> सच ढूंढ्ता ...)
सच ढूंढ्ता रहा शहादत देखिये।
झूठ की हो भी गई ज़मानत देखिये।
अब मौत के आसार हैं ज़्यादा क्योंकि
कड़ी कर दी गई है हिफ़ाज़त देखिए।
भ्रष्टाचार का जंगल तैयार क्यों न हो,
वृक्षारोपण कर रही है सिसायत देखिये।
घरों को बौना रखने के आदेश जो दे गये है,
आसमान चूमती उनकी आप ईमारत देखिये।
विज्ञापनों के खूंटे में टंगा अखबार,
क्या लिखेगा सच की इबारत देखिये।